लेखनी कहानी - चाहती हूं मैं
चाहती हूं मैं
मुझे कहने दो ना,
जो कहना चाहती हूं मैं,
मुझे करने दो ना,
जो करना चाहती हूं मैं,
क्यों रोकते हो हर बार मुझे,
क्यों हर बार टोकते रहते हो,
जी लेने दो मुझे मेरी जिंदगी,
अपना नाम कमाना चाहती हूं मैं,
कब तक चलूं, तुम्हारे पीछे पीछे
अपना रास्ता खुद बनाना चाहती हूं मैं,
मालूम है, मेरे चाहने और होने के बीच,
आते हैं तुम्हारे समाज के दायरे,
मगर अब बहुत हुआ,
कुछ अपने लिए बड़ा करना चाहती हूं मैं,
गिरते संभलते, हंसते रोते,
पहुचूंगी अपनी मंजिल तक मैं,
तुमसे आगे ना सही,
तुम्हारे साथ साथ चलना चाहती हूं मैं।।
प्रियंका वर्मा
4/10/22
आँचल सोनी 'हिया'
08-Oct-2022 02:06 PM
Bahut khoob 💐🙏🌺
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Khan
06-Oct-2022 11:59 PM
Bahut khoob 💐
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Suryansh
05-Oct-2022 11:37 PM
Wahhh बहुत ही खूबसूरत रचना
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